Friday, January 14, 2011

इस साल से

साल नए नए तो बहुत आये गए 
कुछ नया सा करेगे हम इस साल से,

गीत कविता ग़ज़ल तो बहुत लिख दिए
कुछ नया सा रचेगे  हम इस साल से,

डूबा था सूरज रात जीवन की अब तक 
उग रहा देखो, हुई भौर  इस साल से

दर्द पीडाओ की काली राते कटी 
सूर्य शाश्वत रहेगे अब  इस साल से,

बाढ़ सूखा बीहड़ो के दिन लद गए
नए गुलशन खिलेगे इस साल से,

प्यार गेदा और तुलसी के पोधो सा था 
बरगद पीपल उगेगे अब इस साल से,

ख्वाबो में दूर दूर बहुत उड़ लिए 
संग संग ही चलेगे इस साल से

घर मकानों मे अब तक बहुत रह लिए 
उनके दिल मे रहेगे हम इस साल से,